Monday, September 30, 2013

गाँव ...


मेरे गाँव का रस्ता खाली पड़ा है
और पड़े हैं कुछ सूखे पत्ते
पलों को गिनते हुए ।

आवाज जो रुंधे गले से
निकलने की ख्वाइश में
खुद को ही दबा रही है  ।

कुछ लौटते क़दमों से उडती धूल
जिंदगी का एहसास देती
मुझे अँधा बना रही है ।

और देखूं भी तो क्या भला !
सन्नाटे का कोलाहल
आत्मा चीरता निकल जाता है
बिना रक्त की बूँद बहाए
और मैं रक्तबीज बन जाता हूँ
फिर से जीने के लिए !

कुछ खाली मकान है पास में
जिनको बनाने को घर
कभी पागल हुआ था कोई
आज वो फिर से ..
पागल हो गया है ।

कभी बांसुरी की तान पर नाचती,
ये हवा जहरीली है ।
सांस में रची बसी ..
सबको लील जाने के लिए
अट्टहास सी भयावह हंसी ।

गाँव
धारे पर गिरता वो झरना
अपना रंग बदल चुका है
देखो नदी भी स्याह है
रक्त अब काला हो चुका है ।

अमराई व्याकुल हो ताकती
उन इंसानी आवाजों को
जो अब मुर्दों की जुबां बोलते हैं
मुर्दा बन जाने के लिए ।

ओ मौत के देवता !
मुझे भी समा लो अपने में
मैं अपना गाँव फिर से बसाऊंगा
अपने में ही !

4 comments:

Ghozoo said...
This comment has been removed by the author.
Ghozoo said...

Bandhuvar pranaam. Atiuttam :)

Upar likhe username pe mat jaiye - akal ki mandi ke chakkar mein pata nahi kab Maine yeh naam rakh diya. :P

Koi email id ya phone number bataiye... Bade din hue aapse vaartalaap kiye. Jai ho!

- Sunny Somani

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

कमाल है.. अपने गाँव का रास्ता भी कुछ ऐसी ही पगडंडियों से होकर गुजरता है, सूख चुकी अमराई में ठूंठ हुए पेड़ों के पास ठिठककर रुकता है.. और गहरी सांस लेते हुए बूढ़े बरगद की छाँव में सुस्ताने बैठ जाता है..

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

कमाल है.. अपने गाँव का रास्ता भी कुछ ऐसी ही पगडंडियों से होकर गुजरता है, सूख चुकी अमराई में ठूंठ हुए पेड़ों के पास ठिठककर रुकता है.. और गहरी सांस लेते हुए बूढ़े बरगद की छाँव में सुस्ताने बैठ जाता है..