Monday, November 19, 2012

जज्बात


कुसूर
कुसूर न उनका था न हमारा इस बात पर ...
कि दोनों ही गुलाम थे और खता हो गयी |


याद
तेरी याद में अधर मेरे सिल से गए हैं..
अब हँसता भी हूँ तो दर्द होता है कहीं |

भरोसा 
भरोसा न करें तो फिर क्या करें तू बता ..
खुद से भी कोई गिला करता है भला ?

एक घूँट
हरिवंश जी ने कभी तुझपे फक्र किया था ..
देवदास कभी बस तुझपे जिया था ..
मैं तो ताउम्र के लिए मुरीद बन गया हूँ ..
सकी के हाथ से बस एक घूँट पिया था |
बस एक घूँट पिया था |

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