वो मोहब्बतें बाजारों में लुटाते हैं बेफिक्र ..
और हम वही खाली गिलास लिए बैठे हैं |
काश कि कभी आँखों की शराब हमें भी मयस्सर हो ..
जिंदगी गुजर रही है ये ..आस लिए बैठे हैं |
मौत से पहले बेमौत मर चुके हैं कब के ..
अब तो बस ये झूठी सांस लिए बैठे हैं |
मक्का काबा सब बेमानी लग रहे हैं ..
तेरी झलक की एक अरदास लिए बैठे हैं |
मेरी दीवानगी पर लोग आज हंसने लगे हैं ..
कौन उन्हें बताये कि हम कुछ खास लिए बैठे हैं |
उनकी बेवफाई के चर्चे बड़े हो रहे महकमो में ..
उन पर फ़िदा कुछ अपनी लाश लिए बैठे हैं |
जिंदगी के जुए में हारना अब तय है ...
क्या करें वो किस्मत के कुछ ताश लिए बैठे हैं |
शराब भी आर पार हो रही है पता नहीं कहाँ ..
लगता है हम फिर वही खाली गिलास लिए बैठे हैं |
Friday, December 30, 2011
Tuesday, December 13, 2011
जीवन
मैं गिरता हूँ मैं उठता हूँ ..
मैं हँसता हूँ मैं रोता हूँ ..
मैं पाता हूँ मैं खोता हूँ ..
मैं दूरी हूँ ..मजबूरी हूँ ..
मैं सुर्ख लाल पीलापन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
मैं कभी इतराता बादल हूँ ..
कभी मैं माँ का आँचल हूँ ..
मैं सिमटा सा आंसुओं में ..
तेरी आँखों का काजल हूँ
मैं चिलमिल सी उस गर्मी में ..
खुद को बरसाता सावन हूँ
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
मैं ख्वाब बनाता बाग़ सजाता ..
सपनो के वो पर फैलाता ..
टूटन को महसूस कर कभी ..
दुःख के गीत सुरों में गाता ..
मैं रंग रंग के रूप दिखा कर ..
सुलझने वाली उलझन हूँ ..
मैं जीवन हूँ मैं जीवन हूँ |
मैं जख्म सुनहरे देता हूँ ..
मैं दर्द भी गहरे देता हूँ
उत्तर की उम्मीद नहीं हो ..
प्रश्न वहाँ कर लेता हूँ |
तू आगे बढ़.. यूँ न डर ..
मैं मुक्त मुक्त सा बंधन हूँ ..
मैं जीवन हूँ मैं जीवन हूँ |
मैंने तुझको है जन्म दिया ..
मैंने तुझसे है प्रेम किया ..
सब कुछ तो एक धोखा है ..
क्या मैंने दिया ? क्या तूने लिया ?
जो आग उगलती विष फुंकारों में ..
शीतलता न तजे वो चन्दन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
तू चलता जा तुझे चलना है ..
इन अंगारों में जलना है ..
इसमें छुपा है ख्वाब तेरा ..
जो फिर इस दिल में पलना है ..
मेरा हाथ पकड़ और चलते चल ..
मैं ही तेरा तन मन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
मैं हँसता हूँ मैं रोता हूँ ..
मैं पाता हूँ मैं खोता हूँ ..
मैं दूरी हूँ ..मजबूरी हूँ ..
मैं सुर्ख लाल पीलापन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
मैं कभी इतराता बादल हूँ ..
कभी मैं माँ का आँचल हूँ ..
मैं सिमटा सा आंसुओं में ..
तेरी आँखों का काजल हूँ
मैं चिलमिल सी उस गर्मी में ..
खुद को बरसाता सावन हूँ
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
मैं ख्वाब बनाता बाग़ सजाता ..
सपनो के वो पर फैलाता ..
टूटन को महसूस कर कभी ..
दुःख के गीत सुरों में गाता ..
मैं रंग रंग के रूप दिखा कर ..
सुलझने वाली उलझन हूँ ..
मैं जीवन हूँ मैं जीवन हूँ |
मैं जख्म सुनहरे देता हूँ ..
मैं दर्द भी गहरे देता हूँ
उत्तर की उम्मीद नहीं हो ..
प्रश्न वहाँ कर लेता हूँ |
तू आगे बढ़.. यूँ न डर ..
मैं मुक्त मुक्त सा बंधन हूँ ..
मैं जीवन हूँ मैं जीवन हूँ |
मैंने तुझको है जन्म दिया ..
मैंने तुझसे है प्रेम किया ..
सब कुछ तो एक धोखा है ..
क्या मैंने दिया ? क्या तूने लिया ?
जो आग उगलती विष फुंकारों में ..
शीतलता न तजे वो चन्दन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
तू चलता जा तुझे चलना है ..
इन अंगारों में जलना है ..
इसमें छुपा है ख्वाब तेरा ..
जो फिर इस दिल में पलना है ..
मेरा हाथ पकड़ और चलते चल ..
मैं ही तेरा तन मन हूँ ..
मैं जीवन हूँ ..मैं जीवन हूँ |
Sunday, December 11, 2011
इजहार
वो कल रात मेरे चौखट पर आई ..
सकुचाई ..शरमाई ..
हौले से मुस्काई |
चांदनी रात में ..
बात ही बात में ..
मैं इजहार करने वाला था ..
दिल के बाहर ..
प्यार करने वाला था |
लेकिन शब्द अटक गए ..
संदेह खटक गए ..
इकरार और इनकार की कशमकश में ..
कुछ शीशे चटक गए |
वैसे चांदनी रात जवान थी ..
उस शरबत के आगोश में ..
जिसे वो लेकर आई थी ..
मन में लड्डू फूट रहे थे ..
दिल में दिवाली छाई थी ..
लेकिन बाहर मैं अनजान था ..
डरा सा बियाबान था ..
चीखने की हसरत लिए ..
खुद में परेशान था |
इजहार का मौका सही था ..
पर कमबख्त दिल और कहीं था ..
प्रश्न से ज्यादा उत्तर की सोच में ..
शब्दों से ज्यादा भावों के लोच में ..
मैं घिरा हुआ था ..
और फिर स्वेद बिंदु छलक उठे ..
पता नहीं क्यूँ ..शरबत देते हुए ..
उसने मुझे छुआ था |
अब तो प्रलय आ गया था ..
कोहराम छा गया था ..
जैसे बिना आवाज के कोई ..
अच्छा सा गीत गा गया था ..
इस उधेड़बुन में ..
वो जाने लगी थी ..
अपनी आँखें झुका कर ..
लटों पर हाथ फिर कर ..
शरमाकर ..सकुचाकर ..
और मैं इजहार की उम्मीद को ..
उस हसीं गीत को ..
दिल में दफन करने वाला था ..
रंगों की चादर को ..
फिर कफ़न करने वाला था |
कि अचानक वो पीछे मुड़ी ..
पास आई ..
साँसों से सांसें जुडी ..
और वो हौले से बोली ..
आप बेकार ही इतना तकल्लुफ करते हैं ..
घबराइए मत ! हम भी आप पर मरते हैं |
सकुचाई ..शरमाई ..
हौले से मुस्काई |
चांदनी रात में ..
बात ही बात में ..
मैं इजहार करने वाला था ..
दिल के बाहर ..
प्यार करने वाला था |
लेकिन शब्द अटक गए ..
संदेह खटक गए ..
इकरार और इनकार की कशमकश में ..
कुछ शीशे चटक गए |
वैसे चांदनी रात जवान थी ..
उस शरबत के आगोश में ..
जिसे वो लेकर आई थी ..
मन में लड्डू फूट रहे थे ..
दिल में दिवाली छाई थी ..
लेकिन बाहर मैं अनजान था ..
डरा सा बियाबान था ..
चीखने की हसरत लिए ..
खुद में परेशान था |
इजहार का मौका सही था ..
पर कमबख्त दिल और कहीं था ..
प्रश्न से ज्यादा उत्तर की सोच में ..
शब्दों से ज्यादा भावों के लोच में ..
मैं घिरा हुआ था ..
और फिर स्वेद बिंदु छलक उठे ..
पता नहीं क्यूँ ..शरबत देते हुए ..
उसने मुझे छुआ था |
अब तो प्रलय आ गया था ..
कोहराम छा गया था ..
जैसे बिना आवाज के कोई ..
अच्छा सा गीत गा गया था ..
इस उधेड़बुन में ..
वो जाने लगी थी ..
अपनी आँखें झुका कर ..
लटों पर हाथ फिर कर ..
शरमाकर ..सकुचाकर ..
और मैं इजहार की उम्मीद को ..
उस हसीं गीत को ..
दिल में दफन करने वाला था ..
रंगों की चादर को ..
फिर कफ़न करने वाला था |
कि अचानक वो पीछे मुड़ी ..
पास आई ..
साँसों से सांसें जुडी ..
और वो हौले से बोली ..
आप बेकार ही इतना तकल्लुफ करते हैं ..
घबराइए मत ! हम भी आप पर मरते हैं |
चोरी
चुराना था तो तुम्हारा दिल चुराते ..
कम से कम तुम उस अदा से तो मुस्कुराते ..
चुराना था तो तुम्हारी अंगडाई चुराते ..
डरते थे लेकिन उस नूर को कहाँ छुपाते ?
चुराना था तो तुम्हारी आँखों का नशा चुराते ..
पर उस मदहोशी में बताओ कैसे वफ़ा निभाते ?
चुराना था तो तुम्हारी लट का वो बाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे घुमाने की हया समझ पाते ?
चुराना था वो मखमली गाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे छूने की ख्वाहिश जताते ?
चुराना था वो वो अरुण अधर चुराते ..
पर ये बताओ फिर कैसे तुम्हें ऐसे हंसाते ?
चुराना था तो तुम्हारी हरिणी चाल चुराते ..
पर तुम्हें रोक फिर कैसे तुम्हें सताते ?
चुराना था तो तुम्हारी आवाज चुराते ..
पर डरते थे कि खुद को कैसे सुनाते ?
और हमने तो चुराने की ख्वाहिश की थी ..
तुमने तो हमको पहले ही चुरा लिया है ..
सदियाँ हो गयी रास्ता न मिला ..
दिल में ऐसे कहीं छुपा लिया है |
कम से कम तुम उस अदा से तो मुस्कुराते ..
चुराना था तो तुम्हारी अंगडाई चुराते ..
डरते थे लेकिन उस नूर को कहाँ छुपाते ?
चुराना था तो तुम्हारी आँखों का नशा चुराते ..
पर उस मदहोशी में बताओ कैसे वफ़ा निभाते ?
चुराना था तो तुम्हारी लट का वो बाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे घुमाने की हया समझ पाते ?
चुराना था वो मखमली गाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे छूने की ख्वाहिश जताते ?
चुराना था वो वो अरुण अधर चुराते ..
पर ये बताओ फिर कैसे तुम्हें ऐसे हंसाते ?
चुराना था तो तुम्हारी हरिणी चाल चुराते ..
पर तुम्हें रोक फिर कैसे तुम्हें सताते ?
चुराना था तो तुम्हारी आवाज चुराते ..
पर डरते थे कि खुद को कैसे सुनाते ?
और हमने तो चुराने की ख्वाहिश की थी ..
तुमने तो हमको पहले ही चुरा लिया है ..
सदियाँ हो गयी रास्ता न मिला ..
दिल में ऐसे कहीं छुपा लिया है |
Wednesday, December 7, 2011
पता
मेरा हाल न पूछो यारो ..
जीता हूँ कुछ निशानों में |
मैं नहीं मिलूँगा तुम्हें कहीं ..
रहता हूँ कुछ ठिकानो में |
मेरी तबरीज अब खो गयी कहीं ..
बिकता हूँ मैं दुकानों में |
उस ओर जाओगे तो पूछ लेना ..
मेरी रूह का पता उन मकानों में |
जीता हूँ कुछ निशानों में |
मैं नहीं मिलूँगा तुम्हें कहीं ..
रहता हूँ कुछ ठिकानो में |
मेरी तबरीज अब खो गयी कहीं ..
बिकता हूँ मैं दुकानों में |
उस ओर जाओगे तो पूछ लेना ..
मेरी रूह का पता उन मकानों में |
इन्तजार
तू पास थी ..
अरदास थी ...
आभास थी ..
विश्वास थी |
तू क्यूँ सो गयी ..
तू क्यूँ खो गयी ..
उस दुनिया में ..
जहां ..
प्यार था तन्हा सा ..
रूप था नन्हा सा ..
जो बरबस मुस्कुराता था ..
रो कर भी हंसाता था |
वो सुनहरी शाम दे ..
या वो हसीं अंजाम दे ..
जिसकी गोद में कहीं ..
आ बिछुं या नहीं ?
तेरे जवाब की उम्मीद में ..
बैठा सोया नींद में ..
चीलू अनजान चल रहा है ..
मौत बेमौत जल रहा है |
अरदास थी ...
आभास थी ..
विश्वास थी |
तू क्यूँ सो गयी ..
तू क्यूँ खो गयी ..
उस दुनिया में ..
जहां ..
प्यार था तन्हा सा ..
रूप था नन्हा सा ..
जो बरबस मुस्कुराता था ..
रो कर भी हंसाता था |
वो सुनहरी शाम दे ..
या वो हसीं अंजाम दे ..
जिसकी गोद में कहीं ..
आ बिछुं या नहीं ?
तेरे जवाब की उम्मीद में ..
बैठा सोया नींद में ..
चीलू अनजान चल रहा है ..
मौत बेमौत जल रहा है |
मैं
मेरे ख्वाबों की तस्वीर मुझसे है
मेरे वादों की जंजीर मुझसे है |
तकल्लुफ कितना करे कोई वफ़ा में ..
रांझा हूँ मैं ....हीर... मुझसे है |
मंदिर मस्जिद अब नहीं लुभाते मुझे ..
मैं ब्रहम हूँ ..पीर मुझसे है |
ख्वाब अधूरे हैं पर बदनामी नहीं ..
नग्न द्रौपदी हूँ मैं ..चीर मुझसे है |
मैं प्यासा हूँ ! ये भ्रम है तेरा ...
मैं धरती हूँ ..नीर मुझसे है |
तेरा साथ न तेरे ख्वाबों का साथ चाहिए ..
मैं अनेक हूँ ..भीड़ मुझसे है |
मेरे वादों की जंजीर मुझसे है |
तकल्लुफ कितना करे कोई वफ़ा में ..
रांझा हूँ मैं ....हीर... मुझसे है |
मंदिर मस्जिद अब नहीं लुभाते मुझे ..
मैं ब्रहम हूँ ..पीर मुझसे है |
ख्वाब अधूरे हैं पर बदनामी नहीं ..
नग्न द्रौपदी हूँ मैं ..चीर मुझसे है |
मैं प्यासा हूँ ! ये भ्रम है तेरा ...
मैं धरती हूँ ..नीर मुझसे है |
तेरा साथ न तेरे ख्वाबों का साथ चाहिए ..
मैं अनेक हूँ ..भीड़ मुझसे है |
Saturday, December 3, 2011
कशमकश
मेरी जिंदगी अनसुलझे एहसासों का समुन्दर है ..
डूब रहा हूँ नहीं पता कितनी गहराई अन्दर है ?
मुखौटों की बेचैनी मुझे जीने नहीं देती ..
अपने चेहरे की तलाश पीने नहीं देती |
कशमकश का माहौल मेरे अन्दर छाया है ..
मेरे साथ चलता ये किसका साया है ?
मेरे ख्वाब अब श्वेत स्याह हो चुके हैं ..
जो बचे हैं मेरे साथ ही सो चुके हैं |
मुझमें कभी मैं तो कभी कोई और जीता है ..
कौन सा कर्म करूँ ?
बता दे यदि तू गीता है |
डूब रहा हूँ नहीं पता कितनी गहराई अन्दर है ?
मुखौटों की बेचैनी मुझे जीने नहीं देती ..
अपने चेहरे की तलाश पीने नहीं देती |
कशमकश का माहौल मेरे अन्दर छाया है ..
मेरे साथ चलता ये किसका साया है ?
मेरे ख्वाब अब श्वेत स्याह हो चुके हैं ..
जो बचे हैं मेरे साथ ही सो चुके हैं |
मुझमें कभी मैं तो कभी कोई और जीता है ..
कौन सा कर्म करूँ ?
बता दे यदि तू गीता है |
Saturday, November 26, 2011
नशा
नशे को मैंने नहीं आजमाया था ..
मेरा महबूब ने मुझे नशा पिलाया था |
नशे में उसके कमबख्त मैं बहक गया था ..
मेरा महबूब धानी चुनरी में जब आया था |
नशे में ही था जब हाथ चूम जुदा किया उसको ..
मेरा महबूब जब सजा के रुसवाई लाया था |
नशे में वो हाथ मेरा महीनो तक न धुला ..
जिससे मुसकुरा महबूब ने एक कौर खाया था |
नशे में होश खोया ये मालूम न था ..
महबूब नहीं महबूब का वो साया था |
नशे में था इंतज़ार की हद तक इंतज़ार किया ..
मेरे महबूब ने फिर से बेवफाई का गीत गाया था |
मेरे नशे तो इसलिए कहता हूँ बदनाम न करो ..
मेरे महबूब से पूछो उसने नशा क्यूँ पिलाया था |
मेरा महबूब ने मुझे नशा पिलाया था |
नशे में उसके कमबख्त मैं बहक गया था ..
मेरा महबूब धानी चुनरी में जब आया था |
नशे में ही था जब हाथ चूम जुदा किया उसको ..
मेरा महबूब जब सजा के रुसवाई लाया था |
नशे में वो हाथ मेरा महीनो तक न धुला ..
जिससे मुसकुरा महबूब ने एक कौर खाया था |
नशे में होश खोया ये मालूम न था ..
महबूब नहीं महबूब का वो साया था |
नशे में था इंतज़ार की हद तक इंतज़ार किया ..
मेरे महबूब ने फिर से बेवफाई का गीत गाया था |
मेरे नशे तो इसलिए कहता हूँ बदनाम न करो ..
मेरे महबूब से पूछो उसने नशा क्यूँ पिलाया था |
आज का लोकतंत्र
इस दौर में क्या अनोखा समां बंधा है ..
लोकतंत्र में राजा गद्दी पर सजा है |
जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए तंत्र है ..
या चुनिन्दा हुक्मरानों के हाथों का वर्ग यन्त्र है ?
इस तंत्र में क्या मरता किसान आता है ?
जिसके लिए बस कागजी धन लुटाया जाता है |
बेबाकी से इस तरह विदेशी निवेश आता है ,
कि बचा खुचा भी फिर से विदेश जाता है |
अजीब बात है यहाँ स्पेक्ट्रम तो बहुत बिकता है ..
लेकिन उस गाँव में रात को आज भी नहीं दिखता है |
पूरे देश में अलग अलग आवाजों में लोकपाल होता है ..
लोकपाल है क्या पूछता कोई रात पुल के नीचे सोता है |
बातचीत से मुद्दे सुलझाने में कहते हैं वो कि गलती नहीं ..
पर क्या करें हमारी मुई संसद भी तो चलती नहीं !
लोकतंत्र है भैया यहाँ वेतन के साथ पेट्रोल के दाम भी बढ़ते हैं ..
कालाहांडी में भूख से मरे बच्चे ..शव आज भी सड़ते हैं |
ये तो सबको पता है ऐसे लोकतंत्र में देर होती है ..
ये किसी को पता है क्या कि कभी सबेर होती है ?
बड़ा अजीब लोकतंत्र है जहां विवेक पता नहीं कहाँ खो जाता है ..
पटरी उखाड़ने की धमकी दे समूह आरक्षित हो जाता है |
अपना वेतन बढ़ने के प्रस्ताव ध्वनि मत से पास होते हैं ..
मुद्रा स्फीति की बात आये तो हुकमरान बैठे बैठे सोते हैं |
कभी बुद्धू बक्से में देखो कैसे ये सब लड़ते हैं ..?
'लोकतंत्र की हत्या न हो' रिमोट पकडे लोग डरते हैं |
लेकिन शायद लोकतंत्र तो पहले ही मर चुका है ..
उसके अंतिम संस्कार भी न हुआ ..
देखो वो सड़ चुका है |
इसे जिलाना है तो संजीवनी लानी होगी ..
जख्म धोने होंगे बूंदें पिलानी होंगी ..
मेरे दोस्तों ! तुम ही मेरे देश के कर्णधार हो ..
तुम ही इस लोकतंत्र के हथियार हो |
लोकतंत्र में राजा गद्दी पर सजा है |
जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए तंत्र है ..
या चुनिन्दा हुक्मरानों के हाथों का वर्ग यन्त्र है ?
इस तंत्र में क्या मरता किसान आता है ?
जिसके लिए बस कागजी धन लुटाया जाता है |
बेबाकी से इस तरह विदेशी निवेश आता है ,
कि बचा खुचा भी फिर से विदेश जाता है |
अजीब बात है यहाँ स्पेक्ट्रम तो बहुत बिकता है ..
लेकिन उस गाँव में रात को आज भी नहीं दिखता है |
पूरे देश में अलग अलग आवाजों में लोकपाल होता है ..
लोकपाल है क्या पूछता कोई रात पुल के नीचे सोता है |
बातचीत से मुद्दे सुलझाने में कहते हैं वो कि गलती नहीं ..
पर क्या करें हमारी मुई संसद भी तो चलती नहीं !
लोकतंत्र है भैया यहाँ वेतन के साथ पेट्रोल के दाम भी बढ़ते हैं ..
कालाहांडी में भूख से मरे बच्चे ..शव आज भी सड़ते हैं |
ये तो सबको पता है ऐसे लोकतंत्र में देर होती है ..
ये किसी को पता है क्या कि कभी सबेर होती है ?
बड़ा अजीब लोकतंत्र है जहां विवेक पता नहीं कहाँ खो जाता है ..
पटरी उखाड़ने की धमकी दे समूह आरक्षित हो जाता है |
अपना वेतन बढ़ने के प्रस्ताव ध्वनि मत से पास होते हैं ..
मुद्रा स्फीति की बात आये तो हुकमरान बैठे बैठे सोते हैं |
कभी बुद्धू बक्से में देखो कैसे ये सब लड़ते हैं ..?
'लोकतंत्र की हत्या न हो' रिमोट पकडे लोग डरते हैं |
लेकिन शायद लोकतंत्र तो पहले ही मर चुका है ..
उसके अंतिम संस्कार भी न हुआ ..
देखो वो सड़ चुका है |
इसे जिलाना है तो संजीवनी लानी होगी ..
जख्म धोने होंगे बूंदें पिलानी होंगी ..
मेरे दोस्तों ! तुम ही मेरे देश के कर्णधार हो ..
तुम ही इस लोकतंत्र के हथियार हो |
Thursday, November 24, 2011
युवा से प्रश्न
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
बिखरी हुई जवानी हो चुका है ?
समर हो रफा ऐसा निशां कहीं दिखता नहीं ...
तंदूर की आग में बस नान ही सिकता नहीं !
शोणित लालिमा था क्या अब धानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
तूने ही तो पहले माँ का कर्ज चुकाया था ...
तू ही पहले आततायी का सर काट के लाया था !
फिर अब क्या अब इतिहास कहानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
देश तेरा है जल रहा हाँ आज लुटेरे जिन्दा हैं ..
गाँधी का है कत्लेआम और अन्ना शर्मिंदा हैं |
भगत सिंह का बलिदान यहाँ नादानी हो चुका है ..
और ..तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
कायर होते अच्छे की उम्मीद लगाकर मरते हैं ..
निर्भय होते अपने दम पर सब कुछ अच्छा करते हैं |
कौन सुभद्रा लिखती अब कोई मर्दानी हो चुका है ?
तेरा खून ..क्या पानी हो चुका है ?
केवल जिन्दा रहना था तो मनु का बेटा क्यूँ बना ?
जिगर नहीं है लड़ने का तो कर दे खुद को तू फ़ना |
लगता है मायाजाल का तू भी ज्ञानी हो चुका है ..
शायद इसीलिए ..तेरा खून पानी हो चुका है |
शाश्त्र यहीं हैं, शास्त्र यहीं हैं इन्हें उठा के लड़ना सीख ..
मन का संबल धारण करके हँसते हँसते मरना सीख ..
जीवन का सच 'गर्वित जीवन' क्या बस जबानी हो चुका है ?
तेरा खून ..तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
हुस्न-मोहब्बत करने को जीवन सारा पड़ा है देख ..
युवा वायु का उल्टा है जिसका लक्षण होता 'वेग' !
वो वेग कहाँ है परदे में क्या शर्मानी हो चुका है ?
क्या तेरा खून पानी हो चुका है ?
तेरे मुल्क का अब क्या होगा ये तुझपर ही निर्भर है ..
कलियुग में न राम कहीं, न ही कोई गिरिधर है ..
मुल्क तेरा लहू में विष से कितना सानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
अनुशासन हथियार तेरा है पहले खुद से लड़ना सीख ..
अँधा कर दे उस कातिल को मत डर से तू आँखें मींच ..
धूप नहीं है छाँव नहीं है मौसम तूफानी हो चुका है !
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
बिखरी हुई जवानी हो चुका है ?
बिखरी हुई जवानी हो चुका है ?
समर हो रफा ऐसा निशां कहीं दिखता नहीं ...
तंदूर की आग में बस नान ही सिकता नहीं !
शोणित लालिमा था क्या अब धानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
तूने ही तो पहले माँ का कर्ज चुकाया था ...
तू ही पहले आततायी का सर काट के लाया था !
फिर अब क्या अब इतिहास कहानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
देश तेरा है जल रहा हाँ आज लुटेरे जिन्दा हैं ..
गाँधी का है कत्लेआम और अन्ना शर्मिंदा हैं |
भगत सिंह का बलिदान यहाँ नादानी हो चुका है ..
और ..तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
कायर होते अच्छे की उम्मीद लगाकर मरते हैं ..
निर्भय होते अपने दम पर सब कुछ अच्छा करते हैं |
कौन सुभद्रा लिखती अब कोई मर्दानी हो चुका है ?
तेरा खून ..क्या पानी हो चुका है ?
केवल जिन्दा रहना था तो मनु का बेटा क्यूँ बना ?
जिगर नहीं है लड़ने का तो कर दे खुद को तू फ़ना |
लगता है मायाजाल का तू भी ज्ञानी हो चुका है ..
शायद इसीलिए ..तेरा खून पानी हो चुका है |
शाश्त्र यहीं हैं, शास्त्र यहीं हैं इन्हें उठा के लड़ना सीख ..
मन का संबल धारण करके हँसते हँसते मरना सीख ..
जीवन का सच 'गर्वित जीवन' क्या बस जबानी हो चुका है ?
तेरा खून ..तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
हुस्न-मोहब्बत करने को जीवन सारा पड़ा है देख ..
युवा वायु का उल्टा है जिसका लक्षण होता 'वेग' !
वो वेग कहाँ है परदे में क्या शर्मानी हो चुका है ?
क्या तेरा खून पानी हो चुका है ?
तेरे मुल्क का अब क्या होगा ये तुझपर ही निर्भर है ..
कलियुग में न राम कहीं, न ही कोई गिरिधर है ..
मुल्क तेरा लहू में विष से कितना सानी हो चुका है ?
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
अनुशासन हथियार तेरा है पहले खुद से लड़ना सीख ..
अँधा कर दे उस कातिल को मत डर से तू आँखें मींच ..
धूप नहीं है छाँव नहीं है मौसम तूफानी हो चुका है !
तेरा खून क्या पानी हो चुका है ?
बिखरी हुई जवानी हो चुका है ?
Wednesday, November 16, 2011
बुलबुले
मैं वो ही तो हूँ ..बुलबुला !
तुम्हारी तरह पैदा हुआ ..
फिर से खुद में ..
मिल जाने के लिए ..
कुछ पाने के लिए ..
हाँ ..मुझे देखो तो सही ..
मुझमें तस्वीर नजर आएगी ..
सपनो की ..अपनों की
वो भी जो पूरे न हुए ..
वो भी जो अधूरे न हुए ..
वो भी जो पिछड़ गए ..
वो भी जो बिछड़ गए ..
लेकिन अब मैं दुखी नहीं होता ..
और अब मैं अकेले में भी नहीं रोता ..
क्यूंकि मैं अकेला थोड़ी हूँ ..
भीड़ में !
नीड़ में !
घोंसला बनाने कई आये ..
हवा का अंदाजा न था ..
तो बिखर गए कुछ साये ..
तो क्या मैं भी बिखर जाऊं ?
ऐसा ही सारे बुलबुले सोचते हैं ..
नोचते हैं ..खुद को हौसला देकर ..
बनते बिगड़ते ...अपने अस्तित्व को ढूँढने ..
फिर जनम लेते हैं ...
समुन्दर में पहुँचने की आस में ..
खुद को खुश करने की प्यास में ..
और मैं भी वो ही हूँ ..
वही बुलबुला ...
जो खुद से ज्यादा नदी पर निर्भर है ..
और कुछ पत्थरों पर भी ..
डुबकी लगाने वाले ..
अभी तो मैं जिन्दा हूँ ..
देखते हैं समुन्दर की आस ..
कब ख़तम होती है ..?
जीवन की प्यास ..
कब ख़तम होती है ?
तुम्हारी तरह पैदा हुआ ..
फिर से खुद में ..
मिल जाने के लिए ..
कुछ पाने के लिए ..
हाँ ..मुझे देखो तो सही ..
मुझमें तस्वीर नजर आएगी ..
सपनो की ..अपनों की
वो भी जो पूरे न हुए ..
वो भी जो अधूरे न हुए ..
वो भी जो पिछड़ गए ..
वो भी जो बिछड़ गए ..
लेकिन अब मैं दुखी नहीं होता ..
और अब मैं अकेले में भी नहीं रोता ..
क्यूंकि मैं अकेला थोड़ी हूँ ..
भीड़ में !
नीड़ में !
घोंसला बनाने कई आये ..
हवा का अंदाजा न था ..
तो बिखर गए कुछ साये ..
तो क्या मैं भी बिखर जाऊं ?
ऐसा ही सारे बुलबुले सोचते हैं ..
नोचते हैं ..खुद को हौसला देकर ..
बनते बिगड़ते ...अपने अस्तित्व को ढूँढने ..
फिर जनम लेते हैं ...
समुन्दर में पहुँचने की आस में ..
खुद को खुश करने की प्यास में ..
और मैं भी वो ही हूँ ..
वही बुलबुला ...
जो खुद से ज्यादा नदी पर निर्भर है ..
और कुछ पत्थरों पर भी ..
डुबकी लगाने वाले ..
अभी तो मैं जिन्दा हूँ ..
देखते हैं समुन्दर की आस ..
कब ख़तम होती है ..?
जीवन की प्यास ..
कब ख़तम होती है ?
Friday, November 11, 2011
उलझन
मैं पत्ता हूँ ...बिखरा हुआ ..
उलझा सा ...सुलझा सा ...कभी कभी ..
डाल मुझे छोड़ चुकी है ..
हवा मुझे मोड़ चुकी है ..
कहाँ ? और क्यूँ ?
प्रश्न बहुत उठते हैं ..
मन ही मन में घुटते हैं ..
मैं लहरा रहा हूँ ..
अस्तित्व की तलाश में ..
जिसे वो अनिर्वचनीय कहते हैं !
फिर क्यूँ भान होता है ..
अभिमान होता है ..
और मैं फिर गिरता हूँ
धरती की गोद में सामने के लिए |
उलझा सा ...सुलझा सा ...कभी कभी ..
डाल मुझे छोड़ चुकी है ..
हवा मुझे मोड़ चुकी है ..
कहाँ ? और क्यूँ ?
प्रश्न बहुत उठते हैं ..
मन ही मन में घुटते हैं ..
मैं लहरा रहा हूँ ..
अस्तित्व की तलाश में ..
जिसे वो अनिर्वचनीय कहते हैं !
फिर क्यूँ भान होता है ..
अभिमान होता है ..
और मैं फिर गिरता हूँ
धरती की गोद में सामने के लिए |
Friday, August 5, 2011
वो ...
वो अनजाना सा रहता है फूस के मकान में ..
गरीबी में कोई दीवाना नहीं होता ...
आज भी अंधेरों में बीतती है जिंदगी उसकी ..
कोई शमा नहीं होती ..कोई परवाना नहीं होता ..
कोई नहीं बाटता उसकी जोह घर पर आजकल ..
फसल की चिंता में घर जाना नहीं होता ..
जिन घरों में हड्डियां और पीलापन रहा करते हैं ..
उन घरों में किसी का शर्माना नहीं होता ..
बारात गुजरने के बाद पहुँचता है जश्ने महफ़िल में कोई ..
जूठन उठाने को ..उसके घर में दाना नहीं होता ..
कुछ फेंके टुकड़ों को इकठ्ठा कर खुश होता है फिर ..
पता है उसको बच्चों के पास खाना नहीं होता ..
हर रोज उठता है वो जीने की आस लेकर ...
कोई वादा नहीं होता ..कुछ निभाना नहीं होता
सावन में बरसात की आस में जागती दो आँखें ..बालियों के लिए ..
वहाँ कुछ सुहाना नहीं होता ..किसी को कुछ गाना नहीं होता
किसी की लाश को रुखसत करता हुजूम ए आदमजात ...
किसी की लाश के लिए कोई जमाना नहीं होता ..
सपनो की दुनिया में रिझते रिझते खीज गया है वो ..
अब उसे किसी चिराग को पाना नहीं होता ..
कभी ऐसे ही कोई पंक्तियाँ लिख के वाह ले लेता है ..
उसके आंसुओं का क्या ? कोई ठिकाना नहीं होता ..
गरीबी में कोई दीवाना नहीं होता ...
आज भी अंधेरों में बीतती है जिंदगी उसकी ..
कोई शमा नहीं होती ..कोई परवाना नहीं होता ..
कोई नहीं बाटता उसकी जोह घर पर आजकल ..
फसल की चिंता में घर जाना नहीं होता ..
जिन घरों में हड्डियां और पीलापन रहा करते हैं ..
उन घरों में किसी का शर्माना नहीं होता ..
बारात गुजरने के बाद पहुँचता है जश्ने महफ़िल में कोई ..
जूठन उठाने को ..उसके घर में दाना नहीं होता ..
कुछ फेंके टुकड़ों को इकठ्ठा कर खुश होता है फिर ..
पता है उसको बच्चों के पास खाना नहीं होता ..
हर रोज उठता है वो जीने की आस लेकर ...
कोई वादा नहीं होता ..कुछ निभाना नहीं होता
सावन में बरसात की आस में जागती दो आँखें ..बालियों के लिए ..
वहाँ कुछ सुहाना नहीं होता ..किसी को कुछ गाना नहीं होता
किसी की लाश को रुखसत करता हुजूम ए आदमजात ...
किसी की लाश के लिए कोई जमाना नहीं होता ..
सपनो की दुनिया में रिझते रिझते खीज गया है वो ..
अब उसे किसी चिराग को पाना नहीं होता ..
कभी ऐसे ही कोई पंक्तियाँ लिख के वाह ले लेता है ..
उसके आंसुओं का क्या ? कोई ठिकाना नहीं होता ..
Friday, July 8, 2011
दर्द
अँधेरा मेरे साथी बन गया दोस्तों ..
कि अब नींद सी आने लगी है |
इंतज़ार किया उनका नशे में पैबस्त होकर ..
कि अब जान सी जाने लगी है |
मैंने काट ली अपनी फसल सूखी यारो ..
कि अब बदरी सी छाने लगी है |
मेरे हंसने की आवाज छीनकर यारो ..
देखो ! आज बेवफा गाने लगी है |
कितने रोजे रख लिए 'चीलू' ने उसके लिए ..
कि वो फिर से निवाले खाने लगी है |
मुझे जख्मो के सूखने का इन्तजार है ..
वो नमक कहीं से लाने लगी है |
कि अब नींद सी आने लगी है |
इंतज़ार किया उनका नशे में पैबस्त होकर ..
कि अब जान सी जाने लगी है |
मैंने काट ली अपनी फसल सूखी यारो ..
कि अब बदरी सी छाने लगी है |
मेरे हंसने की आवाज छीनकर यारो ..
देखो ! आज बेवफा गाने लगी है |
कितने रोजे रख लिए 'चीलू' ने उसके लिए ..
कि वो फिर से निवाले खाने लगी है |
मुझे जख्मो के सूखने का इन्तजार है ..
वो नमक कहीं से लाने लगी है |
Wednesday, July 6, 2011
सत्य वचन
मेरा गिलास मेरी जिंदगी बन गया है दोस्तों ..
ये भी खाली है ..वो भी खाली है |
किस्मत ने कभी हंस कर कभी रो कर मारा मुझे ...
ये भी गाली है ..वो भी गाली है |
शराब पीता नहीं ...हाँ ! वो पीती है मुझे ..
ये भी साली है ...वो भी साली है |
पड़े रहता है दर बदर सरे बाजार 'चीलू' ..
ये भी नाली है ...वो भी नाली है |
एक पंख से ढकी हुई ..एक देखो कटी हुई ..
ये भी डाली है ..वो भी डाली है |
एक बसाता गुलशन ..एक बसाता जीवन ..
ये भी माली है ..वो भी माली है |
उजालों की दो रस्सियाँ खरीदी हैं मैंने मगर ..
ये भी काली है ..वो भी काली है |
ये भी खाली है ..वो भी खाली है |
किस्मत ने कभी हंस कर कभी रो कर मारा मुझे ...
ये भी गाली है ..वो भी गाली है |
शराब पीता नहीं ...हाँ ! वो पीती है मुझे ..
ये भी साली है ...वो भी साली है |
पड़े रहता है दर बदर सरे बाजार 'चीलू' ..
ये भी नाली है ...वो भी नाली है |
एक पंख से ढकी हुई ..एक देखो कटी हुई ..
ये भी डाली है ..वो भी डाली है |
एक बसाता गुलशन ..एक बसाता जीवन ..
ये भी माली है ..वो भी माली है |
उजालों की दो रस्सियाँ खरीदी हैं मैंने मगर ..
ये भी काली है ..वो भी काली है |
UPSC
CUT OFF के नाम से हर शख्स बिक रहा है ..
हर फुलका UPSC के तंदूर में ..
चाहे बिना सिक रहा है |
STOCK EXCHANGE भी शर्मा जाए ..
ऐसे INDEX बदल रहा है ..
FDI कौन है ...FII कौन ?
जानने को हर कोई मचल रहा है |
UPSC तो लेकिन यारो ..
किस्मत की पैबस्त चाबी है ..
कभी तुम्हारी भाभी थी ..
कभी हमारी भाभी है |
इसलिए चिंता मत करो ...
एक गिलास तो होगा न !
उसमें OLD MONK भरो ..
MAINS में तो शहीद होना ही है ..
PRE की चिंता में मत मरो |
PRE MAINS INTERVIEW ...
खेल हैं जिंदगी के ..
तू खिलाडी है शौक़ीन माना !
लेकिन UPSC नमकीन है बावले ..
उसका स्वाद तूने न जाना |
इसलिए बाबा खोपड़ी वाले का मंतर ..
आज तुझे देता हूँ ..
तेरी नियति तू लिखा के लाया है ..
ये सोचवा कर तेरे दुःख लेता हूँ ..
तू कर मेहनत लेकिन ..
उसमें गुरेज नहीं ..
और तू करेगा ही ..
गर तू फरेब नहीं ..
तेरा हुआ तो सोचना मेहनत थी ..
न हुआ तो सोचना किस्मत थी !
बात मेरी मान ..
हो जा महायान ...
खोपड़ी वाले का कर ध्यान ..
एक कश लगा ..रामबाण !
हर फुलका UPSC के तंदूर में ..
चाहे बिना सिक रहा है |
STOCK EXCHANGE भी शर्मा जाए ..
ऐसे INDEX बदल रहा है ..
FDI कौन है ...FII कौन ?
जानने को हर कोई मचल रहा है |
UPSC तो लेकिन यारो ..
किस्मत की पैबस्त चाबी है ..
कभी तुम्हारी भाभी थी ..
कभी हमारी भाभी है |
इसलिए चिंता मत करो ...
एक गिलास तो होगा न !
उसमें OLD MONK भरो ..
MAINS में तो शहीद होना ही है ..
PRE की चिंता में मत मरो |
PRE MAINS INTERVIEW ...
खेल हैं जिंदगी के ..
तू खिलाडी है शौक़ीन माना !
लेकिन UPSC नमकीन है बावले ..
उसका स्वाद तूने न जाना |
इसलिए बाबा खोपड़ी वाले का मंतर ..
आज तुझे देता हूँ ..
तेरी नियति तू लिखा के लाया है ..
ये सोचवा कर तेरे दुःख लेता हूँ ..
तू कर मेहनत लेकिन ..
उसमें गुरेज नहीं ..
और तू करेगा ही ..
गर तू फरेब नहीं ..
तेरा हुआ तो सोचना मेहनत थी ..
न हुआ तो सोचना किस्मत थी !
बात मेरी मान ..
हो जा महायान ...
खोपड़ी वाले का कर ध्यान ..
एक कश लगा ..रामबाण !
Wednesday, May 4, 2011
प्रार्थना
मैं नहीं माँगता वो मिले ..
जिसको न कभी मैं मिल पाऊं ..
जो भी हो बस इतना देना ..
फूलों के जैसे खिल पाऊं |
जीवन में सुख दुःख आता है ..
मन मेरा घबराता है ..
कभी भोर किरण... कभी निशा चरण ..
व्यर्थ में ये इतराता है ..
इतराहट को दूर करो ..
मन में मेरे शांति भरो ..
जो राह है मेरी निश्चित सी ..
उस पर बरबस चलता जाऊं ..
जीत मिले या हार मिले ..
प्यार मिले या वार मिले ..
समभाव मुझे दाता रखना ..
यही भाव से भर जाऊं
मैं यही भाव से भर जाऊं |
जिसको न कभी मैं मिल पाऊं ..
जो भी हो बस इतना देना ..
फूलों के जैसे खिल पाऊं |
जीवन में सुख दुःख आता है ..
मन मेरा घबराता है ..
कभी भोर किरण... कभी निशा चरण ..
व्यर्थ में ये इतराता है ..
इतराहट को दूर करो ..
मन में मेरे शांति भरो ..
जो राह है मेरी निश्चित सी ..
उस पर बरबस चलता जाऊं ..
जीत मिले या हार मिले ..
प्यार मिले या वार मिले ..
समभाव मुझे दाता रखना ..
यही भाव से भर जाऊं
मैं यही भाव से भर जाऊं |
Saturday, April 23, 2011
मेरी रेल
पटरी पर दौड़ती मेरी रेल
जाने कहाँ जा रही है !
एक अनजाने गुलिस्तां में..
भागते से ..दौड़ते से ..तरु ..
और उनके साथ कदमताल करती ..
मेरी रेल ..
जिंदगी के गीत गा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
कुछ पटरियां अनजान सी ..
मेरी रेल को लालची नजरों से ..
ताकती ..झांकती ..प्रेम से ..
सोचती, नदी के किनारे तो नहीं !
मिलने की आस में गँवा देते अस्तित्व ..
समुन्दर की गोद में |
मेरी रेल जवाब में ..
कुछ कह रही है |
सीटी बजा रही है ...
जाने कहाँ जा रही है !
स्टेशन भी बेगाने से ..
अनजान बन इस्तकबाल करते ..
पर फिर लाल हरी सी कुछ मिठाइयाँ देकर ..
करते नियंत्रित ..पानी की फुहारें भी..
मनुहार करती ..सोचती !
सोचती की मेरी रेल बैठेगी कुछ देर और ..
लेकिन चलना भाग्य में लिखा कर ..
मेरी रेल कहीं से ला रही है |
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल के अन्दर देखो ..
देखो ! एक दुनिया बसी है ..
एक बच्चा रो रहा है ..
एक काकी हंस रही है ..
एक गाने वाला पत्थर बजा ..
मांगता है जिंदगी के कुछ और दिन |
और एक पंडित ..पंचांगों की उधेड़बुन में ..
बतला देता की कब लगन ठहरा है ..
और खुश हो जाता एक कुनबा ..
मेरी रेल देखकर इसको न जाने क्यूँ ..
शर्मा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल गुजरती है ..
धान के खेतों से ..
बालियाँ कहीं सोना बन चुकी हैं ..
और आते कहीं बीहड़ ..
कहीं रेगिस्तान भी ..
नदियाँ और टूटे मकान भी |
कलोल भी निर्जन भी जिनके बीच ..
उन्मुक्त मेरी रेल ..मुक्त है ..
समभाव है |
निर्वाण की परिभाषा ..छुक छुक करते ..
देखो कैसे समझा रही है |
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल देखो भेद नहीं करती ..
राजा या रंक ! अक्षर या अंक !
पहुंचाती सबको है ..गंतव्य पर ..
चढ़ाती सबको है ..मंतव्य पर ..
हाँ देखो सबको चढ़ाती है ..
इंसानों की बस्ती में ..
केवल इंसान को बढाती है |
फिर भी हो जाते हैं कुछ गोधरा लेकिन !
और 'क्यूँ' की खोज में ..
मेरी रेल देखो ..
सो नहीं पा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल रात में ..
ठहरी ठहरी बात में ..
अंधेरों को चीरकर ..
निर्जनता को जीतकर ..
बढती रही है आज तक ..
और दम नहीं लेती ..
जब तक की लक्ष्य न मिले ..
और फिर भी रुकने का नाम नहीं !
क्यूंकि नए देश में जाना है ..
नया लक्ष्य बनाना है |
है न हम इंसानों की जिंदगी की तरह ?
शायद यही हमको बता रही है ..
मेरी रेल ...
अपने नए देश की ओर जा रही है |
जाने कहाँ जा रही है !
एक अनजाने गुलिस्तां में..
भागते से ..दौड़ते से ..तरु ..
और उनके साथ कदमताल करती ..
मेरी रेल ..
जिंदगी के गीत गा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
कुछ पटरियां अनजान सी ..
मेरी रेल को लालची नजरों से ..
ताकती ..झांकती ..प्रेम से ..
सोचती, नदी के किनारे तो नहीं !
मिलने की आस में गँवा देते अस्तित्व ..
समुन्दर की गोद में |
मेरी रेल जवाब में ..
कुछ कह रही है |
सीटी बजा रही है ...
जाने कहाँ जा रही है !
स्टेशन भी बेगाने से ..
अनजान बन इस्तकबाल करते ..
पर फिर लाल हरी सी कुछ मिठाइयाँ देकर ..
करते नियंत्रित ..पानी की फुहारें भी..
मनुहार करती ..सोचती !
सोचती की मेरी रेल बैठेगी कुछ देर और ..
लेकिन चलना भाग्य में लिखा कर ..
मेरी रेल कहीं से ला रही है |
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल के अन्दर देखो ..
देखो ! एक दुनिया बसी है ..
एक बच्चा रो रहा है ..
एक काकी हंस रही है ..
एक गाने वाला पत्थर बजा ..
मांगता है जिंदगी के कुछ और दिन |
और एक पंडित ..पंचांगों की उधेड़बुन में ..
बतला देता की कब लगन ठहरा है ..
और खुश हो जाता एक कुनबा ..
मेरी रेल देखकर इसको न जाने क्यूँ ..
शर्मा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल गुजरती है ..
धान के खेतों से ..
बालियाँ कहीं सोना बन चुकी हैं ..
और आते कहीं बीहड़ ..
कहीं रेगिस्तान भी ..
नदियाँ और टूटे मकान भी |
कलोल भी निर्जन भी जिनके बीच ..
उन्मुक्त मेरी रेल ..मुक्त है ..
समभाव है |
निर्वाण की परिभाषा ..छुक छुक करते ..
देखो कैसे समझा रही है |
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल देखो भेद नहीं करती ..
राजा या रंक ! अक्षर या अंक !
पहुंचाती सबको है ..गंतव्य पर ..
चढ़ाती सबको है ..मंतव्य पर ..
हाँ देखो सबको चढ़ाती है ..
इंसानों की बस्ती में ..
केवल इंसान को बढाती है |
फिर भी हो जाते हैं कुछ गोधरा लेकिन !
और 'क्यूँ' की खोज में ..
मेरी रेल देखो ..
सो नहीं पा रही है ..
जाने कहाँ जा रही है !
मेरी रेल रात में ..
ठहरी ठहरी बात में ..
अंधेरों को चीरकर ..
निर्जनता को जीतकर ..
बढती रही है आज तक ..
और दम नहीं लेती ..
जब तक की लक्ष्य न मिले ..
और फिर भी रुकने का नाम नहीं !
क्यूंकि नए देश में जाना है ..
नया लक्ष्य बनाना है |
है न हम इंसानों की जिंदगी की तरह ?
शायद यही हमको बता रही है ..
मेरी रेल ...
अपने नए देश की ओर जा रही है |
Monday, March 28, 2011
भारत और इंडिया
मेरा 'भारत' 'इंडिया' को देखता है ..सोचता है ...
साथ ही जन्मे थे दोनों ..
१५ अगस्त की पटरी पर ..
बस लाली नहीं थी खून था ..
उस मैली कुचैली गठरी पर |
मेरा भारत कुछ बड़ा हुआ ..
पोलियो का शिकार बन ..
जैसे तैसे खड़ा हुआ |
आँख उठा उसने देखा ..
भाई की किस्मत की रेखा ...
ने उसको बहुत संवारा है ..
वो माँ का दुलारा है !
मेरा भारत सो जाता है पेट पकड़ ..
क्यूंकि निवालों की दौड़ अजीब होती है .
और दर्द उठता है जब तो रख लेता एक पत्थर ..
पेट पर ...
जैसे वो भरा हो !
और सामने देखता MAC-D के बाहर..
इंडिया डाल कर चला जाता है कुछ बर्गर..
कूड़े के ढेर में ..
जिसे खा जाता है गली का वो कुत्ता ..
जिसके साथ भारत कल रात को सोया था |
मेरे भारत को प्यास भी नहीं लगती ...
उसके गले ने रेगिस्तान में रहना सीख लिया है ..
और जब जान पर बन आती है ...
तो चला जाता है गंगा किनारे जहां ..
इंडिया ने अभी कचरा गिराया है |
मेरा भारत खेती करता है ..
मानसून की आस में पल पल मरता है ..
भाई के यहाँ से आये ख़त में देखता ..
कुछ फोटू जहां..
इंडिया रेन डांस करता है |
मेरा भारत स्कूल नहीं जाता ..पढने के लिए ..
होटल जाता है ..चाय के कुछ प्याले उठाने !
जिसे पीकर अभी अभी इंडिया उठा है ..
आँखें चमक तो जाती हैं मेरे भारत की ..
वो बस्ता ..वो पेंसिल ..वो पानी की बोतल !
देख कर लेकिन सोचता है ..
भीख मांगने का टाइम हो गया !
मेरा भारत बीमार नहीं होता ...
क्यूंकि उसे पता नहीं कि ..
'बीमार न होना' क्या होता है ?
अपने भाई इंडिया के बारे में पढता है..
मेडिकल पर्यटन में एक नम्बरी हो गया है |
फिर निकाल लेता एक हरी गोली ..
जो हर बीमारी में खा कर ..
सोच लेता है मैं ठीक हूँ |
मेरा भारत अंग्रेजी नहीं बोलता ..
मेहनत करना जानता है पर ..
पर उससे क्या होता है ?
इंडिया से मिलने जाता है कभी कभी ..
लेकिन दरवाजे पर ही अंग्रेजी सुन कर ..
ठिठक जाता है ..दुबक जाता है..
एक कोने में !
और देखता है चिल्लाते हुए इंडिया को ..
MAC BOOK में नेट के न चलने पर |
सोचता है अपने घर के बारे में ..
कि उसकी बिजली कब लगेगी ?
मेरा भारत सुनता है ..इंडिया तरक्की कर रहा है ..
मन ही मन कुछ आंकड़ो को देखकर खुश होता .
और सोच लेता कि अब उसे भी कुछ मिलेगा ..
इंडिया भी आश्वस्त कर देता उसे ..
कुछ योजनायें ..परियोजनायें.. हर साल अपनी चला कर |
लेकिन मेरे भारत के पास कागज नहीं है ..
भारत होने का !
और लौट आता वो वापिस अपने फूस के मकान में ..
जिससे बनाकर रस्सी कई बार लटक चूका है वो |
साथ ही जन्मे थे दोनों ..
१५ अगस्त की पटरी पर ..
बस लाली नहीं थी खून था ..
उस मैली कुचैली गठरी पर |
मेरा भारत कुछ बड़ा हुआ ..
पोलियो का शिकार बन ..
जैसे तैसे खड़ा हुआ |
आँख उठा उसने देखा ..
भाई की किस्मत की रेखा ...
ने उसको बहुत संवारा है ..
वो माँ का दुलारा है !
मेरा भारत सो जाता है पेट पकड़ ..
क्यूंकि निवालों की दौड़ अजीब होती है .
और दर्द उठता है जब तो रख लेता एक पत्थर ..
पेट पर ...
जैसे वो भरा हो !
और सामने देखता MAC-D के बाहर..
इंडिया डाल कर चला जाता है कुछ बर्गर..
कूड़े के ढेर में ..
जिसे खा जाता है गली का वो कुत्ता ..
जिसके साथ भारत कल रात को सोया था |
मेरे भारत को प्यास भी नहीं लगती ...
उसके गले ने रेगिस्तान में रहना सीख लिया है ..
और जब जान पर बन आती है ...
तो चला जाता है गंगा किनारे जहां ..
इंडिया ने अभी कचरा गिराया है |
मेरा भारत खेती करता है ..
मानसून की आस में पल पल मरता है ..
भाई के यहाँ से आये ख़त में देखता ..
कुछ फोटू जहां..
इंडिया रेन डांस करता है |
मेरा भारत स्कूल नहीं जाता ..पढने के लिए ..
होटल जाता है ..चाय के कुछ प्याले उठाने !
जिसे पीकर अभी अभी इंडिया उठा है ..
आँखें चमक तो जाती हैं मेरे भारत की ..
वो बस्ता ..वो पेंसिल ..वो पानी की बोतल !
देख कर लेकिन सोचता है ..
भीख मांगने का टाइम हो गया !
मेरा भारत बीमार नहीं होता ...
क्यूंकि उसे पता नहीं कि ..
'बीमार न होना' क्या होता है ?
अपने भाई इंडिया के बारे में पढता है..
मेडिकल पर्यटन में एक नम्बरी हो गया है |
फिर निकाल लेता एक हरी गोली ..
जो हर बीमारी में खा कर ..
सोच लेता है मैं ठीक हूँ |
मेरा भारत अंग्रेजी नहीं बोलता ..
मेहनत करना जानता है पर ..
पर उससे क्या होता है ?
इंडिया से मिलने जाता है कभी कभी ..
लेकिन दरवाजे पर ही अंग्रेजी सुन कर ..
ठिठक जाता है ..दुबक जाता है..
एक कोने में !
और देखता है चिल्लाते हुए इंडिया को ..
MAC BOOK में नेट के न चलने पर |
सोचता है अपने घर के बारे में ..
कि उसकी बिजली कब लगेगी ?
मेरा भारत सुनता है ..इंडिया तरक्की कर रहा है ..
मन ही मन कुछ आंकड़ो को देखकर खुश होता .
और सोच लेता कि अब उसे भी कुछ मिलेगा ..
इंडिया भी आश्वस्त कर देता उसे ..
कुछ योजनायें ..परियोजनायें.. हर साल अपनी चला कर |
लेकिन मेरे भारत के पास कागज नहीं है ..
भारत होने का !
और लौट आता वो वापिस अपने फूस के मकान में ..
जिससे बनाकर रस्सी कई बार लटक चूका है वो |
Monday, March 21, 2011
कर्म
कर्म ही तो प्राण है ..
वीर का उस धीर का ..
'अकर्म' भी तो 'कर्म' है !
'विकर्म' भी तो कर्म है !
तू तो कर्म बद्ध है |
तो तो 'रज्जु सिद्ध' है |
भाग तू सकता नहीं ..
जाग तू सकता नहीं ..
नियति में तो कर्म है ..
धर्म में भी कर्म है ..
अधर्म में भी कर्म है ..
त्याग भी तो कर्म है ..
ज्ञान भी कर्म है ..
दान भी तो कर्म है ..
सार भी तो कर्म है ..
वार भी तो कर्म है ..
जब कर्म के इस चक्र में ..
धरा में तू फंस गया ..
बिना हाथ पैर का ..
दलदल में तू धंस गया ..
तो पलायन का भाव क्यूँ ?
शौर्य का अभाव क्यूँ ?
कर्म से मुकुटमणि ..
है कभी बचता नहीं ..
चन्दन को सर्प ज्यूँ ..
है कभी तजता नहीं ..
तो कर्म जब है वस्र तो ..
क्यूँ न हम करम करें ?
कर्म बस विकर्म न हो ..
क्यूँ न ये धरम धरें ?
तो वीर तो प्रणाम कर ..
वीरता को शिरो धर ..
अकर्मण्य हो के छद्म बन !
या कर्म करके पद्म बन |
वीर का उस धीर का ..
'अकर्म' भी तो 'कर्म' है !
'विकर्म' भी तो कर्म है !
तू तो कर्म बद्ध है |
तो तो 'रज्जु सिद्ध' है |
भाग तू सकता नहीं ..
जाग तू सकता नहीं ..
नियति में तो कर्म है ..
धर्म में भी कर्म है ..
अधर्म में भी कर्म है ..
त्याग भी तो कर्म है ..
ज्ञान भी कर्म है ..
दान भी तो कर्म है ..
सार भी तो कर्म है ..
वार भी तो कर्म है ..
जब कर्म के इस चक्र में ..
धरा में तू फंस गया ..
बिना हाथ पैर का ..
दलदल में तू धंस गया ..
तो पलायन का भाव क्यूँ ?
शौर्य का अभाव क्यूँ ?
कर्म से मुकुटमणि ..
है कभी बचता नहीं ..
चन्दन को सर्प ज्यूँ ..
है कभी तजता नहीं ..
तो कर्म जब है वस्र तो ..
क्यूँ न हम करम करें ?
कर्म बस विकर्म न हो ..
क्यूँ न ये धरम धरें ?
तो वीर तो प्रणाम कर ..
वीरता को शिरो धर ..
अकर्मण्य हो के छद्म बन !
या कर्म करके पद्म बन |
आज के अर्जुन को सन्देश
वीर का स्वभाव उसके वार से पहचान लो ...
मौन वो है पर नहीं रण में, तुम ये जान लो ...
'नर मुंड' ही लिपि हैं ..'विक्षत' ही हैं चंद बोल ..
'चीत्कार' ही प्रभाव है ..रण के जब रहस्य
अर्जुन के सम उद्विग्न ..
शब्द में फंसा हुआ ...
स्वयं आत्मग्लानि में ..
खुद में ही धंसा हुआ !
सोच कृष्ण मन में है ..
'गीता' रण के वन में है ..
उद्वेग से परे झलक ..
भीड़ से अलग विलग ..
देख अपने आप को ..
भीरु क्यूँ तो हो रहा ?
परिणाम से विलग थलग ..
स्वप्न में क्यूँ सो रहा ?
कर्म योगी गर तू है तो लक्ष्य का क्यूँ भान है ?
शस्त्र बस उठा ले तू ..'कर्म ही बस आन है' |
क्या होगा क्या नहीं .?
तेरे बस में कब था ये .. ?
शमशान में मत पुकारना कि ..
तेरे बस में सब था ये !
मौन वो है पर नहीं रण में, तुम ये जान लो ...
'नर मुंड' ही लिपि हैं ..'विक्षत' ही हैं चंद बोल ..
'चीत्कार' ही प्रभाव है ..रण के जब रहस्य
अर्जुन के सम उद्विग्न ..
शब्द में फंसा हुआ ...
स्वयं आत्मग्लानि में ..
खुद में ही धंसा हुआ !
सोच कृष्ण मन में है ..
'गीता' रण के वन में है ..
उद्वेग से परे झलक ..
भीड़ से अलग विलग ..
देख अपने आप को ..
भीरु क्यूँ तो हो रहा ?
परिणाम से विलग थलग ..
स्वप्न में क्यूँ सो रहा ?
कर्म योगी गर तू है तो लक्ष्य का क्यूँ भान है ?
शस्त्र बस उठा ले तू ..'कर्म ही बस आन है' |
क्या होगा क्या नहीं .?
तेरे बस में कब था ये .. ?
शमशान में मत पुकारना कि ..
तेरे बस में सब था ये !
रण
पथ पुकारता है ..रथ पुकारता है ..
नभ पुकारता है ..अलख पुकारता है |
वीरता की ओट में ..भय भीरु सम समा ..
ओज के उस तेज में ..मुखाग्र को तम तमा ..
तू रौद्र बन ..
चिंघाड़ कर ..
पछाड़ कर ..
वार कर ..
शत्रु भितरघात को .. धरा पर सुला दे ...
शमशीर की उस धार को ...वज्र से मिला दे ..
फूलों की सेज नहीं ..ये चंडिका का तेज है ..
तेज को शिरोधार्य कर ...व्योम को हिला दे |
तू देख खुद को कौन है ...
चीत्कार कर क्यूँ मौन है ?
तूने ही तो शस्त्र उठा ..प्रण ये लिया था !
अस्तित्व झोंकने को अपना ...तर्पण भी किया था !
राष्ट्र हित में खुद को ...अर्पण भी किया था !
भभूत लगायी थी जब ..समर्पण भी किया था !
चक्रव्यूह में देख अब ..द्वार तोडना बाकी है ..
यही तेरा प्याला है ..यही तेरी साकी है ...
आज नशे में आना है ...और कुछ कर जाना है ...
घबरा मत युद्ध और होंगे .....
द्वार तो बस बहाना है ..
द्वार तो बस बहाना है ...
वो देख व्योम लाल है ...
क्यूँ विदीर्ण तेरा भाल है ?
क्यूँ झुकी तेरी ढाल है ?
जब तू स्वयं काल है !
जब तू स्वयं काल है !
रण में वीर बन के लड़ ..
मृत्यु को कुछ यूँ पकड़ ...
ज्यूँ तू यमराज है ..
मृत्यु की मृत्यु आज है |
नभ पुकारता है ..अलख पुकारता है |
वीरता की ओट में ..भय भीरु सम समा ..
ओज के उस तेज में ..मुखाग्र को तम तमा ..
तू रौद्र बन ..
चिंघाड़ कर ..
पछाड़ कर ..
वार कर ..
शत्रु भितरघात को .. धरा पर सुला दे ...
शमशीर की उस धार को ...वज्र से मिला दे ..
फूलों की सेज नहीं ..ये चंडिका का तेज है ..
तेज को शिरोधार्य कर ...व्योम को हिला दे |
तू देख खुद को कौन है ...
चीत्कार कर क्यूँ मौन है ?
तूने ही तो शस्त्र उठा ..प्रण ये लिया था !
अस्तित्व झोंकने को अपना ...तर्पण भी किया था !
राष्ट्र हित में खुद को ...अर्पण भी किया था !
भभूत लगायी थी जब ..समर्पण भी किया था !
चक्रव्यूह में देख अब ..द्वार तोडना बाकी है ..
यही तेरा प्याला है ..यही तेरी साकी है ...
आज नशे में आना है ...और कुछ कर जाना है ...
घबरा मत युद्ध और होंगे .....
द्वार तो बस बहाना है ..
द्वार तो बस बहाना है ...
वो देख व्योम लाल है ...
क्यूँ विदीर्ण तेरा भाल है ?
क्यूँ झुकी तेरी ढाल है ?
जब तू स्वयं काल है !
जब तू स्वयं काल है !
रण में वीर बन के लड़ ..
मृत्यु को कुछ यूँ पकड़ ...
ज्यूँ तू यमराज है ..
मृत्यु की मृत्यु आज है |
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